महामारी की शुरुआत में ही सार्स-कोव-2 जीनोम के 30 हज़ार क्षारों में से एक एडीनोसिन (A) से गुवानीन (G) में परिवर्तित हो गया था। जीनोम के 23,403वें स्थान पर यह उत्परिवर्तित वायरस दुनिया भर में फैल गया है। ऐसे में वैज्ञानिक जगत में यह सवाल उठा है कि क्या यह परिवर्तन इसलिए व्यापक हो गया है क्योंकि इससे वायरस को तेज़ी से फैलने में मदद मिलती है या फिर यह सिर्फ एक संयोग है?
अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह वायरस भविष्य में और अधिक भयानक होने वाला है या फिर समय के साथ कमज़ोर हो जाएगा। कुछ वायरस विज्ञानियों का मत है कि पूर्व में तो मनुष्य सार्स-कोव-2 से अच्छी तरह से अनुकूलित थे लेकिन 2019 के अंत में इसका ऐसा रूप सामने आया जिसने कई लोगों को संक्रमित कर दिया। अध्ययन से पता चला है कि औसतन इस वायरस के जीनोम में प्रति माह 2 उत्परिवर्तन होते हैं। अधिकांश परिवर्तन वायरस के व्यवहार को प्रभावित नहीं करते हैं जबकि कुछ परिवर्तन रोग की गंभीरता को ज़रूर बदल देते हैं।
परिवर्तन का एक मामला ओआरएफ-8 नामक जीन की 382 क्षार जोड़ियों के विलोपन के साथ हुआ। साल 2003 में कोरोनावायरस के करीबी सार्स के जीन में भी इसी तरह का विलोपन हुआ था। बाद में प्रयोगशाला में किए गए अध्ययन से पता चला था कि यह संस्करण कम कुशलता से प्रतिकृतियां बनाता था। लगता है कि सार्स महामारी को धीमा करने में इसका हाथ था। लेकिन सेल कल्चर प्रयोगों से पता चलता है कि सार्स-कोव-2 के प्रसार पर उत्परिवर्तन का कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ा है। इससे रोग के कम गंभीर होने के संकेत मिले हैं।
सार्स-कोव-2 में 23,403वें स्थान पर उत्परिवर्तन ने मानव कोशिकाओं से जुड़ने वाले वायरस की सतह पर उपस्थित प्रोटीन स्पाइक में परिवर्तन किया है। इस उत्परिवर्तन को G614 नाम दिया गया है। सेल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि वायरस का G614 संस्करण अब सभी देशों में सामान्य रूप से पाया जाने लगा है जबकि मूल संस्करण लगभग सभी जगह से खत्म हो गया है। प्रयोगों से पता चलता है कि G614 मूल वायरस की तुलना में 1.2 गुना ज़्यादा तेज़ी से फैलता है। सेल कल्चर प्रयोगों से यह भी पता चला है कि G614 संस्करण वाले स्पाइक प्रोटीन कोशिकाओं में प्रवेश करने में अधिक सक्षम हैं। G614 के स्पाइक में मामूली परिवर्तन से प्रोटीन में संरचनात्मक बदलाव हुए हैं जिससे वायरस की झिल्ली और मनुष्य की कोशिकाओं का जुड़ना आसान हो गया है। पता चला है कि यह वायरस तीन से दस गुना अधिक संक्रामक हो गया है। लेकिन कई वैज्ञानिकों का कहना है कि कल्चर में वायरस के व्यवहार के आधार पर वास्तविक परिस्थिति के बारे में सीधे-सीधे निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। इसके लिए गंधबिलाव जैसे जंतुओं पर प्रयोग ज़रूरी हैं।
एक सवाल यह भी है कि इतना फैल जाने के बाद भी उत्परिवर्तन इसके व्यवहार को प्रभावित क्यों नहीं कर पाए हैं? वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी शायद वायरस पर कोई चयन दबाव नहीं है क्योंकि इतने सारे असंक्रमित व्यक्ति प्रसार के लिए मौजूद हैं। हो सकता है कि टीका या नए उपचारों के आगमन के साथ स्थिति बदल जाए।(स्रोत फीचर्स)
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Srote - May 2017
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