शहरी पक्षियों की एक प्रजाति ने सिगरेट के ठूंठों का इस्तेमाल खोज लिया है। मेक्सिको का निवासी यह फिंच पक्षी (Carpodacus mexicanus) सिगरेट ठूंठ अपने घोंसले में इकट्ठे करता है ताकि उसके चूज़े पिस्सू से बचे रहें।
मेक्सिको के राष्ट्रीय स्वायत्त विश्वविद्यालय के कॉन्स्टेंटिनो मासियास गार्शिया और उनके साथी कई वर्षों से इन पक्षियों की इस विचित्र आदत का अध्ययन करते रहे हैं कि ये अपने घोंसले में सिगरेट के ठूंठ जमा करते हैं। उनका शक था कि वे सिगरेट के ठूंठ में उपस्थित निकोटीन व अन्य रसायनों का उपयोग आत्म रक्षा के लिए करते हैं। निकोटीन के परजीवी-रोधी गुण तो जाने-माने हैं।
शक को यकीन में बदलने के लिए उन्होंने प्रयोग करने की ठानी। मासियास गार्शिया की टीम ने इन घरेलू फिंच पक्षियों के 32 घोंसलों का सहारा लिया। जिस दिन घोंसले में अंडे दिए गए, उसके अगले दिन उन्होंने घोसलों का कुदरती अस्तर हटा दिया और उसकी जगह कृत्रिम अस्तर बिछा दिया ताकि वहां मौजूद परजीवी हट जाएं। इसके बाद उन्होंने 10 घोंसलों में ज़िन्दा पिस्सू डाल दिए, 10 में मृत पिस्सू डाले और 12 को पिस्सुओं से मुक्त रखा गया।
टीम ने देखा कि यदि घोंसले में पिस्सू हों, तो ज़्यादा संभावना होती है कि पक्षी उसमें सिगरेट के ठूंठ जमा करेगा। और तो और, जिन घोसलों में ज़िन्दा पिस्सू रखे गए थे उनमें सिगरेट ठूंठों का वज़न उन घोंसलों के मुकाबले 40 प्रतिशत ज़्यादा था जिनमें मृत पिस्सू डाले गए थे।
जर्नल ऑफ एवियन बायोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में मासियास गार्शिया का निष्कर्ष है कि फिंच पक्षी सिगरेट के ठूंठ का इस्तेमाल पिस्सुओं जैसे बाह्य परजीवी से बचाव के लिए कर रहे हैं। ये पिस्सू पक्षियों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ये उनके पंखों को कुतर डालते हैं और खून चूसते हैं।
उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर लेना इन पक्षियों ने सीख लिया है, जो एक दिलचस्प बात है। किंतु कई वैज्ञानिक मानते हैं कि लंबे समय में यह आदत हानिकारक हो सकती है क्योंकि निकोटीन व अन्य रसायन पक्षियों की जेनेटिक बनावट को प्रभावित कर सकते हैं हालांकि मासियास गार्शिया का मत है कि उन्होंने इन पक्षियों के खून का विश्लेषण किया और ऐसे किसी जेनेटिक परिवर्तन का प्रमाण नहीं मिला। एक संभावना यह बनती है कि जेनेटिक असर काफी समय में नज़र आते हैं, इसलिए शायद यह निष्कर्ष इतना पुख्ता न हो। इसके लिए लंबे समय तक इन फिंच पक्षियों का अध्ययन ज़रूरी होगा। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - November 2016
- कोशिका में स्व-भक्षण के लिए नोबेल पुरस्कार
- भौतिकी नोबेल: पदार्थों के विचित्र व्यवहार का गणित
- आणविक मशीनों के लिए नोबेल पुरस्कार
- जलीय कोकैन का लोभ एक मछली के लिए खतरा
- गंध से बीमारी का निदान
- अब छठे स्वाद का पता चला
- अनाजों के कुदरती सम्बंधियों पर खतरा
- शब्दों की जगह लेंगे भावचित्र
- यू.के. की आधी प्रजातियों में गिरावट
- कैसे निर्मित होता है ध्रुवीय प्रकाश?
- बीमारी के समय क्या खाएं कि जल्दी स्वस्थ हों
- सिज़ेरियन से जन्मे बच्चों में मोटापे की संभावना
- दो मां, एक पिता की पहली संतान ने जन्म लिया
- टीकाकरण के प्रति अविश्वास में युरोप सबसे आगे
- पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे, कहां हुई?
- पार्किंसन रोग के कई कारणों का एकीकरण
- एक भारतीय मौसम वैज्ञानिक: अन्ना मणी
- इन्हें न दे घर निकाला, ये तो स्वास्थ्य रक्षक हैं
- मधुमेह रोगियों के लिए अच्छी खबर
- एंथ्रोपोसीन: भूगर्भ इतिहास में एक नया युग क्यों?
- पृथ्वी की बोझा ढोने की सीमा
- कुवैत में नागरिकों के लिए डीएनए परीक्षण अनिवार्य
- सितारों के सफर की तैयारी तेज़
- कितनी सफल और उचित है कृत्रिम वर्षा?
- दिमागी प्रशिक्षण के खेलों का सच
- एंटीबैक्टीरियल साबुन पर प्रतिबंध
- बच्चे को कैसे पता कब जन्म लेना है
- अपने आप खिलता प्लास्टिक का फूल
- पक्षियों के समान मछलियां भी गाती हैं
- जंगली शेरनियों का नर शेरों की तरह व्यवहार