दो अलग-अलग वैज्ञानिक समूहों ने रिपोर्ट किया है कि उन्हें सूर्य जैसे तारों के आसपास ऐसे अणुओं के दर्शन हुए हैं जो जीवन के शुरुआती अणु हो सकते हैं। यह अणु मिथाइल आइसो सायनेट (एमआईसी) है और भोपाल गैस कांड के संदर्भ में यह बहुत मशहूर हुआ था।
मिथाइल आइसो सायनेट की खोज खगोल-रसायनज्ञों के लिए तब महत्वपूर्ण हो गई थी जब 2 वर्ष पूर्व युरोप की अंतरिक्ष एजेंसी के रोज़ेटा मिशन ने एक उल्का (67पी/चुर्यूमॉव-गेरासिमेंको) पर इस अणु की उपस्थिति देखी थी। माना जाता है कि उल्काएं सौर मंडल के साथ ही बनी थीं और तब से आज तक अपने मूल स्वरूप में बनी हुई हैं। यदि उल्का पर कोई रसायन पाया जाता है तो इसका मतलब है कि वह सौर मंडल के प्रारंभ में ही बना होगा।
67पी/चुर्यूमॉव-गेरासिमेंको के बाद मिथाइल आइसो सायनेट अंतरिक्ष में दो अन्य जगहों पर खोजा गया है। ये तारा-निर्माण के स्थलों के बादल हैं। मिथाइल आइसो सायनेट की खोज का महत्व यह है कि यह एक अपेक्षाकृत जटिल कार्बनिक अणु है और इसकी संरचना में पेप्टाइड नुमा बंधन पाया जाता है। गौरतलब है कि पेप्टाइड बंधन प्रोटीन में अमीनो अम्लों को जोड़ने वाला बंधन है।
अब शोधकर्ताओं ने दो और जगहों पर मिथाइल आइसो सायनेट की खोज की है। पहला दल नेदरलैण्ड्स की लीडेन वेधशाला में स्थित है और दूसरा दल मैड्रिड (स्पेन) में स्थित है। दोनों ही दलों ने मिथाइल आइसो सायनेट की खोज उन स्थानों से आने वाले प्रकाश के विश्लेषण के आधार पर की है।
प्रकाश के साथ प्रत्येक अणु की एक विशिष्ट अंतर्क्रिया होती है। इस अंतर्क्रिया के दौरान वह अणु प्रकाश के विशिष्ट हिस्सों को सोख लेता है जबकि कुछ प्रकाश छोड़ता भी है। प्रकाश के इन अलग-अलग हिस्सों की पहचान उनकी तरंग लंबाई के आधार पर की जाती है। प्रत्येक अणु की उपस्थिति का प्रकाश की अलग-अलग तरंग लंबाइयों वाले भाग पर अलग-अलग असर होता है। इस असर के फलस्वरूप प्रत्येक अणु प्रकाश का एक विशिष्ट वर्णक्रम प्रस्तुत करता है। यह लगभग उसकी उंगलियों के निशानों की तरह होता है, जिसके आधार पर अणु की शिनाख्त हो सकती है।
इनमें से एक दल का नेतृत्व नील्स लिग्टरिंक कर रहे थे और दूसरी टीम के मुखिया मैड्रिड के सेंटर फॉर एस्ट्रोबायोलॉजी के राफेल मार्टिन-डोमेनेक थे। इन दोनों के शोध पत्र मंथली नोटिसेस ऑफ दी रॉयल एस्ट्रॉनॉमिकल सोसायटी के ताज़ा अंक में प्रकाशित हुए हैं।
वैसे अन्य शोधकर्ताओं का मत है कि मिथाइल आइसो सायनेट काफी जटिल अणु है किंतु अमीनो अम्लों की तुलना में कुछ नहीं है। अमीनो अम्ल ही जीवन की वास्तविक निर्माण इकाइयां हैं। मगर यह भी सही है कि मिथाइल आइसो सायनेट के मिलने से इतना तो तय है कि जटिल कार्बनिक अणु सौर मंडल के सुदूर अतीत में ही अस्तित्व में आ चुके थे। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - November 2017
- आवाज़ पैदा करते हैं, सुनते नहीं ये मेंढक!
- क्या मनुष्य का विकास जारी है?
- शार्क अनुमान से ज़्यादा जीती हैं
- चिम्पैंज़ी में भी अल्ज़ाइमर के लक्षण देखे गए
- हल्का-फुल्का, नज़रें चुराता न्यूट्रिनो
- जेंडर छवियां बहुत कम उम्र में बनने लगती हैं
- पारिजात, हरसिंगार और बाओबाब
- भाप बनकर उड़ते पानी से ऊर्जा
- पुरुषों के लिए प्रजनन-रोधक गोली
- सौर ऊर्जा के दोहन के लिए कृत्रिम पत्ती
- परमाणु ऊर्जा के लिए थोरियम का उपयोग
- अकाल अच्छे कामों का भी
- अब जल्द भरेंगे गहरे घाव
- उच्च शिक्षा संस्थान और स्कूली विज्ञान शिक्षा
- विनम्र कौआ हमारी सोच से ज़्यादा चालाक है
- नेत्रदान की आसान होती तकनीक
- चमगादड़ों को दृष्टिभ्रम
- जीएम फसलों पर संसदीय समिति की रिपोर्ट
- बिटकॉइन के हाथों में जा रहा है बाज़ार
- प्राचीन काल के महान वैज्ञानिक अरस्तू
- कीटों की मदद से कीटों पर नियंत्रण
- ब्रह्मचारी मोर के आंसू और गर्भवती मोरनी
- रक्त कैंसर को थामने में विटामिन सी कारगर
- इन मछलियों को डायबिटीज़ क्यों नहीं होता?
- पूर्वाग्रहों से निपटना आसान नहीं है
- मानव की उत्पत्ति के पदचिन्ह
- स्वकाया प्रवेश उर्फ मिस्टर टॉमकिन्स इनसाइड हिमसेल्फ: एडवेंचर्स इन दी न्यू बायोलॉजी