भारत डोगराजब किसी क्षेत्र के लोग सूखे से त्रस्त हों और आसमान से गुज़रते बादल पानी न बरसाएं तो यह इच्छा उठनी स्वाभाविक है कि किसी तरह इन बादलों से पानी बरसवा लिया जाए। मनुष्य की यही इच्छा विज्ञान के स्तर पर कृत्रिम वर्षा के प्रयासों के रूप में समय-समय पर प्रकट होती रहती है।
दरअसल कृत्रिम वर्षा की तकनीक कोई नई तकनीक नहीं है। 50 वर्ष या उससे भी पहले से इसके छिटपुट प्रयास होते रहे हैं। इस तकनीक का सबसे प्रचलित रूप यह है कि बादलों पर हवाई जहाज़ से सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाए। पर उसके अन्य उपाय भी हैं। बादल पर बौछार या क्लाउड सीडिंग करने के लिए अमेरिका में विशेष तरह का ड्रोन विमान भी विकसित किया गया है।
इस समय कृत्रिम वर्षा करवाने का सबसे बड़ा कार्यक्रम चीन चला रहा है। जहां लोकतांत्रिक विरोध व न्यायिक हस्तक्षेप की संभावना कम है, वहां कृत्रिम वर्षा करवाने की संभावना अधिक है। वजह यह है कि यदि कृत्रिम वर्षा का प्रयोग सफल हो भी जाता है और अधिक वर्षा हो जाती है, तो पास के अन्य क्षेत्रों के लोग शिकायत दर्ज़ कर सकते हैं कि कृत्रिम ढंग से वह पानी भी बरसा लिया गया जो बादलों ने हमारे यहां बरसाना था। इस तरह की शिकायतें तो कभी समाप्त नहीं हो सकतीं और इसके आधार पर मुकदमे भी दर्ज़ हो सकते हैं।
यह पता लगाना बहुत कठिन होता है कि जो वर्षा हुई वह प्राकृतिक थी या कृत्रिम थी। हो सकता है यह वर्षा सिल्वर आयोडाइड के छिड़काव के बिना भी हो जाती। अर्थात यह पता लगाना भी बहुत कठिन है कि छिड़काव पर जो भारी-भरकम खर्च किया गया वह उचित था या नहीं। दूसरी ओर, कई बार ऐसा भी हुआ है कि सिल्वर आयोडाइड के छिड़काव से भी वर्षा नहीं हुई। यही वजह है कि तमिलनाड़ु, कर्नाटक, महाराष्ट्र में कुछ छिटपुट प्रयासों के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कृत्रिम वर्षा के प्रयास अभी ज़ोर नहीं पकड़ सके हैं।
इसके अतिरिक्त एक अन्य संभावना यह बनी हुई है कि युद्ध के दौरान ऐसे प्रयास किए जाएं कि शत्रु देश के किसी विशेष क्षेत्र में कृत्रिम उपायों से भीषण वर्षा करवा दी जाए। वियतनाम युद्ध के दौरान वियतनाम के गुरिल्ला सैनिकों को परेशान करने के लिए ऐसे कुछ प्रयोग किए जाने की चर्चा रही है, हालांकि यह प्रामाणिक तौर पर नहीं पता चल सका है कि ये प्रयास कितने सफल हुए थे। ये प्रयास अधिक सफल रहे तो दूसरे पक्ष के सैनिकों के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न की जा सकती है व कृत्रिम बाढ़ की स्थिति भी उत्पन्न की जा सकती है। दूसरी ओर, अपने देश की रक्षा करने के लिए हमलावर सैनिकों को कुछ हद तक रोकने के लिए भी कृत्रिम वर्षा का उपयोग किया जा सकता है।
फिलहाल जहां तक शांति काल में सूखा ग्रस्त लोगों को राहत देने के लिए कृत्रिम वर्षा के उपयोग का सवाल है, तो यह सुझाव अभी कई समस्याओं से भरा हुआ है। चार-पांच दशकों में यह तकनीक उपलब्ध होने के बावजूद अधिक प्रगति नहीं हुई है और किसी बड़े सूखाग्रस्त क्षेत्र को अभी इससे अधिक राहत नहीं मिल सकी है। इससे पता चलता है कि फिलहाल कृत्रिम वर्षा से बहुत उम्मीदें नहीं की जा सकती। हो सकता है इससे किसी सीमित क्षेत्र में अल्पकालीन सफलता मिल जाए, पर अभी राष्ट्रीय स्तर पर इसे एक व्यापक कार्यक्रम के रूप में अपनाना उचित नहीं होगा। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - July 2017
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