मूल्य ₹ 50 1 बाल विज्ान पवरिका जुलाई 2019 RNI क्र. 50309/85 डाक पंजीयन क्र. म. प्र./भोपाल/261/2018-20/पृष्ठ संख्ा 44/प्रकाशन तिथि 26 जून 2019/ पोस्टंग तिथि 29 जूनजापानी कलाकार मोनोकोबो ने एक ऐसी दुवनया की कलपना की है वजसमें मनुषय विशाल जानिरों के साथ रहते हैं। जैसे वक वबवललयाँ, उलललू, पाण्ा, खरगोश, कुत्े इतयावद। इस दुवनया में वबलली जब उदास होती है तो िह वकसी मनुषय को उठाकर उसको गले से लगा सकती है। यहाँ का माहौल शानत है, सुनदर है। स्लूव्यो विबली से प्ेवरत 24 िर्ष की मोनोकोबो असल में कौन हैं, यह हमें पता नहीं। सोवशयल मीव्या पर उनका नाम है Ariduka55. मो नो को बो जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 2 एकलवय फाउण्ेशन, जा्खेडी, फॉरलू्षन कसतलूरी के पास, भोपाल, मधय प्देश 462 026, फोन: +91 755 2977770 से 3 तक email - chakmak@eklavya.in, circulation@eklavya.in; www.chakmak.eklavya.in, www.eklavya.in एकलव्य रनदा (एकलवय के नाम से बने) मनीऑ््षर/रेक से भेज सकते हैं। एकलवय भोपाल के खाते में ऑनलाइन जमा करने के वलए वििरण: बैंक का नाम ि पता - स्े् बैंक ऑफ इवण्या, महािीर नगर, भोपाल खाता नमबर - 10107770248 IFSC को् - SBIN 0003867 कृपया खाते में रावश ्ालने के बाद इसकी पलूरी जानकारी accounts.pitara@eklavya.in पर ज़रूर दें। वितरण झनक राम साहलू सहयोग कमलेश्ा यादि एक प्वत : ₹ 50 िावर्षक : ₹ 500 तीन साल : ₹ 1350 आजीिन : ₹ 6000 सभी ्ाक खर्ष हम देंगे इस बार अंक 394 जुलाई 2019 मोनोकोबो 2 मेरे पिता – कार्ल सगान से ममरे...- साशा सगान 4 ज़ोर - शादाब आरम 6 पकट् टू उड़नछटू! - हप्षिका उदासी 7 क्यों-क्यों? 10 पिंट ु िेिरी - मुकेश मारवीय 12 गणित है मज़ेदार 14 तुम भी जानो 16 घर में क्ा होता ह ै ?- सी एन सुब्रह्मण्यम् 17 िहरी बाररश का मतरब - रोहन चक्रवतती 20 तुम भी बनाओ 21 चटूं-चटूं करती... - नेचर कॉनज़ववेशन फाउण् े शन 22 मुननटू की मटूँछें - वीरेन्द्र दुबे 24 इनसानयों के आसिास - जजतेश शेल्े व कारटू राम शमा्ल 25 गोिी गवैया बाघा बजैया - उिेन्द्रपकशोर रायचौधरी 27 दुघ्लटनाओं की...- पवंग कमाण्र के टी सुधीर 30 बीमाररययों को सटूँघने के जरए इरेक्ट्ॉमनक नाक 32 मेरा िन्ा 34 भटूर-भुरैया 40 माथािच्ी 41 जचत्रिहेरी 43 आखिरी तारीि - रवरीन ममश्ा 44 आवरण चित्र: लेपाक्षी के वषीरभद्र मन्दिर में बना चित्र। समपादन विनता विश्िनाथन सह समपादक कविता वतिारी सवजता नायर गुल सावरका झा व्ज़ाइन कनक श्ावश सलाहकार सी एन सुब्रणयम् शवश सबलोक विज्ान सलाहकार सुश्ाील जोश्ाी जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 3हम एक रेतीले रंग के पतथर से बने मकान में रहते थे। सामने के दरिाज़े के ऊपर पतथर पर एक पंखिाला साँप और सोलर व्सक तराशी हुई थी। लगता था यह प्ारीन सुमेवरया 1 से लाई कोई रीज़ हो, या इंव्याना जोनस 2 (की कथा) से। वकसी भी सलूरत में यह नयलू यॉक्ष प्देश के एक शहरी इलाके की रीज़ नहीं लगती थी। हमारा िर एक गहरी खाई के ऊपर बसा था, वजसके पार इथका शहर था। वपछली शताबदी के अनत में ‘वसफंकस हे् ्लूमब’ नामक यह मकान इथका शहर के कॉरनेल विश्िविद्ालय की एक रहसयिादी सवमवत का मुखयालय था। शताबदी के दलूसरे भाग में इसमें एक रसोई और कुछ शयन-कक्ष जोडे गए थे। और 1980 के आते-आते इसे एक वनजी िर का रूप दे वदया गया था, वजसमें मैं अपने अदभुत माँ और पापा के साथ रहती थी। मेरे वपता, काल्ष सगान, कॉरनेल 3 में अनतवरक्ष विज्ान और आलोरनातमक वरनतन पढाते थे। इस समय तक िे काफी मशहलूर हो गए थे और अकसर ्ी.िी. पर वदखाई देते थे – जहाँ िे ब्राण् के बारे में अपनी प्भािशाली वजज्ासा से लाखों लोगों को प्ेवरत करते थे। पर वसफंकस हे् ्लूमब के अनदर िे और मेरी माँ – एन ड्ुयन – वमलकर वकताबें, वनबन्ध और ना्क वलखते थे। उनके अनुसार अन्धविश्िास, रहसयिाद और अन्धभवकत संसकृवत पर हािी होते जा रहे थे। इनकी जगह िे विज्ान की विव्ध के फलसफे को लोकवप्य बनाने के वलए जु्े रहते थे। िे एक-दलूसरे से बेइनतेहा पयार करते थे। और अब एक ियसक के रूप में मैं देख पाती हलूँ वक उनकी ये पेशेिर साझेदावरयाँ उनके वमलन का ही एक और रूप था, पयार करने का एक और तरीका। ऐसा ही एक काम था 13 कवडयों का एक ्ी.िी ्धारािावहक। नाम था ‘कॉसमॉस’। इसे मेरे माता-वपता ने 1980 में वमलकर वलखा था और पापा ने इसे प्सतुत वकया था। इसका एक नया रूप मेरी माँ ने हाल में फॉकस रैनल 4 पर दोबारा प्सतुत करना शुरू वकया है। प्ारवमभक सकूल में वदन वबताने के बाद, िर आकर खाने की मेज़ की ररचाओं में, एक-एक करके, मुझे ब्राण् के वररकावलक इवतहास के पाठ और संशयी विरारों ( sceptical thought ) में ्लूबने के मौके वमलते। मेरे माता-वपता मेरे “कयों” िाले सिालों की झडी का बहुत ्धीरज से जिाब देते। और जिाबों में एक बार भी उनहोंने यह नहीं कहा वक “मैंने कहा इसवलए” या “बस ऐसा ही होता है”। हर सिाल को एक सोरा-समझा और ईमानदार जिाब वमलता था – उन सिालों को भी वजनके कोई जिाब होते ही नहीं। मेरे पिता कार्ल सगान से पमरे अमरत्व और मृत्यु के सबक साशा सगान जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 4एक बार जब मैं बहुत छो्ी थी – मैंने पापा से उनके माता-वपता के बारे में पलूछा। मैं अपने नाना—नानी को करीब से जानती थी, पर यह जानना राहती थी वक मैं कभी अपने दादा-दादी से कयों नहीं वमली थी। “कयोंवक िे मर गए हैं,” पापा ने उदासी से कहा। “कया तुम उनसे वफर कभी वमल पाओगे?” मैंने पलूछा। उनहोंने अपने जिाब पर कुछ पल धयान से सोरा। आवखर में उनहोंने कहा वक अपने माता-वपता से वमलने से जयादा दुवनया में िे कुछ नहीं राहते। पर उनके पास न तो कोई कारण था, और न ही कोई प्माण – जो मृतयु के बाद के जीिन के विरार का समथ्षन करे। इसवलए िे राहते हुए भी इस लालर में यकीन नहीं कर सकते थे। “कयों?” तब उनहोंने मुझे बहुत नरमी से बताया वक कुछ बातों पर वसफ्ष इसवलए यकीन करना बहुत खतरनाक हो सकता है कयोंवक आप बस यह राहते हो वक िे सर हों। अगर आप खुद से और दलूसरों से, खासकर उनसे जो सत्ा पर कावबज़ हैं, सिाल न पलूछें तो आप ्धोखा खा सकते हैं। उनहोंने मुझे बताया वक हर िह रीज़ जो सरमुर िासतविक है, जाँर पर खरी उतर सकती है। जहाँ तक मुझे याद है, यही पहली बार था जब मैंनै मौत के सथावयति (वररकावलकता) को समझना शुरू वकया था। जैसे-जैसे मैंने एक अवसतति के लिु-संक् का सामना वकया, मेरे माता-वपता ने मुझे सहारा वदया, अपने िैज्ावनक दृवष्कोण से ज़रा भी वहले बगैर। “तुम वज़नदा हो, अभी – इसी पल। यह एक गज़ब की बात है,” उनहोंने मुझसे कहा। अगर तुम एक अकेले इनसान के पैदा होने के रासते में पडने िाले उन लगभग अनवगनत दोराहों पर गौर करो, उनहोंने कहा, तो तुमहें इस बात का शुक्र मनाना रावहए वक इस पल तुम तुम हो। मसलन, उन विशाल संखया में मौजलूद िैकवलपक ब्राण्ों के बारे में सोरो जहाँ तुमहारे पर-पर-दादा- दादी कभी वमले ही न हों और तुम बने ही न हों। इससे भी आगे, तुम एक ऐसे ग्रह पर रहने का आननद ले पा रही हो जहाँ उवविकास ( Evolution ) की मदद से तुम हिा में साँस ले सकती हो, पानी पी सकती हो, और हमारे सबसे करीबी वसतारे की गममी से पयार कर सकती हो। तुम ्ी.एन.ए. के विारा पीवढयों से जुडी हुई हो – बवलक उससे भी पीछे जाएँ तो तुम पलूरे ब्राण् से जुडी हुई हो – कयोंवक तुमहारे शरीर की हर कोवशका वसतारों के वदल में पकी है। हम लोग तारा-कणों से बने हैं, मेरे पापा का एक मशहलूर िाकय है, और उनहोंने मुझे ठीक िैसा ही महसलूस कराया। चक मक यह लेख “लैसन्स ऑफ इमॉर्टेललर्षी एण्ड मॉर्टेललर्षी फ्ॉम माइ फादर, काल्ल सगान” न्ू यॉक्ल मैगजषीन में 2014 में छपा था। सुमेवरया1 ित्षमान दवक्षणी इराक में आज से 6500-4000 साल पहले मेसोपो्ेवमया की सबसे पुरानी सभयता। इंव्याना जोनस2 एक साहसी ि वज़नदावदल वकरदार, जो पहली बार 1981 में रे्स्ष ऑफ द लॉस् आक्ष अंग्रेज़ी वफलम में वदखा था। आवक्षयोलॉजी का प्ोफेसर, जो प्ारीन सभयताओं का विशेरज् है और पुरानी वमसट्ी को सुलझाने के वलए कुछ भी करने को तैयार है। कॉरनेल विश्िविद्ालय3 अमेवरका के नयलू यॉक्ष प्देश के एक ऐवतहावसक शहर का जानामाना विश्िविद्ालय। फॉकस रैनल4 अमेवरका का एक लोकवप्य ्ीिी रैनल। 5चक मक ज़ोर शादाब आलम चित्र: हबषीब अलषी चमत्कार हो जकातका है जब लगतका जी से ज़ोर। चढ़ी सकाइकिल पे प्कारी तड़-बड़-तड़ पैडल मकारी छूट गई पीछे द ू री छूट गईं सखियाँ सकारी। बढ़ी रौंदिर िीचड़, पत्थर वह मंज़ज़ल िी ओर। बड़े जोश में थका दकारका फूँ-फूँ-फूँ-फूँ फुफिकारका दम भरिे जब फूँिका तो फूलका, कपचिका गुब्कारका। चट-चट-चट-चट बजी तकाज़लयाँ गूँजका मीठका शोर। सुन्दर पंिों वकालका है ज़सर पे मुिुट निरकालका है चमिीली, लमबी गद्दि बेहद भोलका-भकालका है ददयका ियकालों िो धक्का तो मि मे िकाचका मोर। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 6“हम कहाँ जा रहे हैं?” वकट्लू ने मा्धि से पलूछ ही वलया। वकट्लू अपने जीिन की पहली साइवकल सिारी का खलूब मज़ा ले रहा था। िो ्धीमी-्धीमी हिा का आननद ले रहा था जो उसके बालों को सहलाते हुए बह रही थी। पर साइवकल के ्ण्े पर बैठे-बैठे उसके पुटठे काफी दद्ष करने लगे थे। यहाँ तो उसका बायाँ यानी आ्धा पैर जयादा आराम में था, और उसे बराबर ये धयान रखना पड रहा था वक दायाँ पैर पै्ल से न ्करा जाए कयोंवक िो अजीब ढंग से ल्क रहा था। “पुवलस स्ेशन,” मा्धि ने गमभीरता से कहा। “पुवलस स्ेशन?” “हाँ, नहीं तो और कहाँ। िो लोग तुमहारे माता-वपता को ढलूँढेंगे। और वफर मैं अपनी कुलफी बेर सकूँगा।” वकट्लू को ये बात कुछ जमी नहीं कयोंवक दो साल की उम्र से ही उसके मन में पुवलस िालों के प्वत एक गहरा अविश्िास पैदा हो गया था। और इस अविश्िास के पीछे माँ विारा लगातार दी जाने िाली ्धमवकयों का काफी हाथ था: “वकट्लू अगर तुमने खाना नहीं खाया तो पुवलस िाला आएगा और तुमहें पकडकर ले जाएगा।” “वकट्लू तुम बहुत तंग कर रहे हो! रुको मैं अभी पुवलस अंकल को फोन करती हलूँ। िो तुमहें पकडकर ले जाएँगे!” हालाँवक कभी कोई पुवलस िाला वकट्लू को पकडकर नहीं ले गया, पर वकट्लू कतई नहीं राहता था वक उसे इस तरह के अनुभि से कभी भी गुज़रना पडे। िो ऐसे वकसी कमरे में भी नहीं जाना राहता था वजसमें बहुत सारे पुवलस िाले हों। यही समय था वकसी भी मुवश्कल पवरवसथवत से बर वनकलने की अपनी सबसे अचछी तरकीब आज़माने का। “पुवलस? हाह! पुवलस के पास जाने से तुम मुसीबत में फँस सकते हो।” “लेवकन कयों? वकसी गुम हो गए लडके को पुवलस स्ेशन पहुँराने के वलए? कैसी बेिकूफी भरी बातें कर रहे हो!” मा्धि ने हँसी उडाते हुए कहा। पर पाँर वमन् बाद, मा्धि ने यलू-्न्ष ले वलया था। िो हाइिे से दलूर एक पथरीले रासते पर बहुत उदास और दुखी होकर साइवकल रलाए जा रहा था। 15 वमन् बाद िो लोग जनिार गाँि में थे और मा्धि के िर के बाहर खडे थे। और िो ननहा तानाशाह खुशी से फूला नहीं समा रहा था। यह हर्षिका उदासषी की अंग्ेजषी रकताब Kittu’s Very Mad Day का हहदिषी अनुवाद है। अब तक तुमने पढ़ा : माधव नाम का आइसक्ीम वाला एक छोर्े बच्े को अपना ग्ाहक समझकर आइसक्ीम के ललए पूछता है। वह बातूनषी बच्ा 'रकट् ू ' आइसक्ीम खा लेता है और पैसे भषी नहीं देता। लेरकन जब रकट् ू उसे बताता है रक उसका एक पैर नहीं है और वह खो गया है तो माधव अपनषी साइरकल पर लादकर उसे अपने साथ ले जाता है। रकट् ू के रपता हषीरे के व्यापारषी हैं। काम के लसललसले में उन्हें पन्ा जाना होता है। इसषी बहाने िौदह लोगाें का उनका पररवार भषी सैर के ललए उनके साथ हो लेता है। मुम्बई लौर्ते समय एक ढाबे पर रकट् ू छ ू र् जाता है। अपने षीबोगरषीब पररवार से अलग होकर उसे ा आ रहा है। वकट्लू उडनछलू! - 3 ‘मैड’ मधेश्वरी हर् षि का उदासषी अंग्ेजषी से अनुवाद: भरत रत्रपाठषी चित्र: लावण्ा नायड ू जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 7मा्धि का िर छो्ा था। आगे के आँगन में कपडे ्धोने की जगह थी। एक कोने में इमली के पेड के आसपास बेतरतीब ढंग से कुछ बेलें उग रही थीं। और एक तरफ कपडे सुखाने की रससी बँ्धी थी वजस पर अभी-अभी ्धुले कपडे लदे हुए थे। आँगन में एक औरत खडी हुई थी जो कपडों के साथ मशककत कर रही थी और अपने आप से बातें भी करती जा रही थी। “मुझे समझ में नहीं आता वक तीन लोग एक वदन में बाल्ी भर कपडे कैसे गनदे कर लेते हैं। लोग तो यही सोरेंगे वक मुझे कपडे ्धोने और सुखाने के अलािा और कोई काम...” मा्धि को देखते ही उसने अपने आप से बडबडाना बनद वकया और मा्धि से शुरू। “तुम इस समय यहाँ कया कर रहे हो? और ये लडका कौन है? इसका वसफ्ष एक पैर कयों है? तुम ठीक तो हो? सबज़ी खरीदी वक नहीं? कुछ कहोगे भी या लकिा मार गया है?” ये थी मा्धि की पतनी मंगलेश्िरी, जो बहुत मेहनती थी। लेवकन उसकी ज़बान उससे भी जयादा मेहनती थी। िो पलूरे समय बोलती थी, और उसकी बातों में जयादातर सिाल होते थे। “अनदर तो रलो, सब बताता हलूँ,” मा्धि ने उससे फुसफुसाकर कहा। “कयों? अनदर कयों? कया यहाँ...” लेवकन उसके पवत ने उसे जलदी से अनदर खींर वलया। पर उनके अनदर जाने और दरिाज़ा बनद हो जाने के बाद भी वकट्लू को उनकी बातरीत सुनाई दे रही थी। आदमी की आिाज़: सुनो! बाहर जो लडका है िो कोई सामानय लडका नहीं है। औरत की आिाज़: हाँ मुझे पता है। आदमी: तुमहें पहले से ही पता है? कैसे? औरत: कयोंवक उसका एक ही पैर है ना। आदमी: अरे नहीं बाबा! औरत: तो वफर? और कया बात है? कया ये तुमहारे भाई का लडका है? कया ये हमसे हमारा िर छीनने आया है? आदमी: बस! बस करो! कया फालतलू की बातें वकए जा रही हो! धयान से सुनो। िो मुमबई के वकसी ्ॉन का बे्ा है। औरत: ्ॉन? यानी गुण्ा? तो िो यहाँ कया कर रहा है? आदमी: िो गुम हो गया है। उसे अपने माँ-बाप को ढलूँढना है। और हमें उसकी मदद करनी है। वकट्लू की खलूबी थी वक िो एक वमन् में कोई भी कहानी गढ सकता था। मा्धि को ये समझाते हुए वक उसे पुवलस स्ेशन कयों नहीं जाना रावहए, उसने अपने वपता की खलनायक जैसी छवि पेश कर दी थी। उनहें ्ॉन बना वदया था। उसने साफ कर वदया था वक अगर मा्धि ने उसे पुवलस को सौंप वदया तो उसके वपता मा्धि के साथ कया करेंगे इसका वज़ममेदार िो नहीं होगा। इसके उल्, अगर मा्धि उसे अपने िर में सुरवक्षत रखेगा तो शायद उसके वपता मा्धि को कुछ इनाम दे दें। अनदर कुछ वमन् तक खामोशी छाई रही। वकट्लू तो ये बात नहीं जानता था लेवकन अपनी पलूरी वज़नदगी में मंगलेश्िरी वबना कोई सिाल पलूछे इतनी देर तक कभी रुप नहीं रही थी। लेवकन तभी वकट्लू ने कुछ देखा वजससे उसका धयान बँ्ा। बाहर हुई एक ज़ोरदार रीख ने उस खामोशी को तोड वदया। “तुमहारी वहममत कैसे हुई उसको छलूने की?” मंगलेश्िरी और मा्धि दौडकर बाहर आए। कहीं ्ॉन ने उनके िर पर हमला तो नहीं कर वदया था? “हाँ, मैंने छलू वदया! कया हो गया अगर छलू वदया तो? िैसे भी ये है कया? कया सोने का बना है?” “नहीं! हीरों का!” वकट्लू से उलझ रही उस लडकी ने गुससे से जिाब वदया। “रुप-रुप म्धेश्िरी!” मा्धि ने म्धेश्िरी की तरफ आँखें फाडकर देखा और आँख भी मारी। हालाँवक एक साथ दोनों रीज़ें करते हुए मा्धि काफी अजीब वदखाई वदया। म्धेश्िरी ने अपने वपता की तरफ झाँककर देखा ये समझने के वलए वक उनकी आँख अरानक से फडकने लगी थी या वफर िो आँखों से कुछ इशारे कर रहे थे। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 8लेवकन िो कुछ कह पाती, इससे पहले ही वकट्लू की हँसी छलू् पडी। “म्धेश्िरी! वकतना अजीब नाम है। तुम पर जँरता भी है। नहीं, इससे भी अचछा लगेगा मै्!” वकट्लू ने तुरनत म्धेश्िरी के नाम की अंग्रेज़ी सपेवलंग के पहले तीन अक्षरों को लेकर उसका एक नया नाम बना वदया था -- ‘मै्’ मतलब पागल। “अचछा, मेरे नाम का मज़ाक बना रहे हो। और तुम कौन हो -- एक पैर िालों के राजय के राजा?” “खबरदार, मेरे पैर के बारे में कुछ कहा तो। मेरा नाम वकट्लू है।” “देखो तो ज़रा। खुद का नाम वकट्लू है और इनको म्धेश्िरी अजीब नाम लगता है।” अब ठहाका लगाकर हँसने की बारी म्धेश्िरी की थी। “बस करो तुम दोनों!” अपने गंजे वसर को पकडते हुए मा्धि बोला। “म्धेश्िरी, वकट्लू कुछ वदनों तक हमारे साथ ही रहेगा। ये खो गया है और हमें इसके मममी-पापा को ढलूँढना है।” “ये अपने मममी-पापा को फोन कयों नहीं लगा लेता? या इस राजा के राजय के लोगों के पास फोन नहीं हैं?” “बनद करो लडाई!” मा्धि ने अपनी बे्ी की बात को नज़रअनदाज़ करते हुए कडक आिाज़ में कहा। इतना सब होने के बाद बस यही होना बाकी रह गया था। वकट्लू और म्धेश्िरी उस छो्े-से आँगन के एक-एक छोर की तरफ रल वदए, लेवकन जाते हुए म्धेश्िरी ने वकट्लू के कान में ्धमकाने िाले अनदाज़ में फुसफुसाकर कहा, “मुझसे दलूर रहना!” सबसे बडा बदलाि तो म्धेश्िरी में हुआ था वजसको इतना झ्का लगा था वक िो वबलकुल रुप हो गई थी। चक मक ...जारी जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 9Next >