फिर जीत गई ताटकी और दिलेर बड़ेय्या
इस किताब में दो कहानियाँ हैं। पहली कहानी “दिलेर बड़ेय्या” जातिगत शोषण पर आधारित है। मादिगा जाति में जन्म लेने के कारण बड़ेय्या और उसके परिवार को कठिन हालातों से जूझना पड़ता है। बड़ेय्या की माँ ज़मींदार के सामने चप्पल नहीं पहन सकती जबकि उनका काम ही है दूसरों के लिए जूते-चप्पल बनाना। ऐसे में एक दिन वह अपनी माँ के लिए चप्पल बनाता है। किताब की दूसरी कहानी “फिर जीत गई ताटकी” की मज़बूत किरदार है बालम्मा, जो ज़मींदार के खेत से भी पहले अपने खेत को सींच लेती है। एक दिन ज़मींदार चील की तरह उस पर झपट पड़ता है लेकिन बालम्मा सूझबूझ और हिम्मत से उसका सामना करती है।
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